(Chhatrapati Shivaji Maharaj Ke Prashasanik Sudharon Ka Prabhav aur Mata Jijabai Ki Shikshaye- Naai Pidhi Ke Liye Sikh)
इस लेख में हम उनके प्रशासनिक सुधारों, किलों की वास्तुकला, युद्धनीतियों, और उनके ऐतिहासिक योगदान को विस्तार से जानेंगे। और साथ ही साथ माता जीजाबाई ने उन्हें कैसी परवरिश और शिक्षाएँ दी यह भी जानेगे और आनेवाले पीढ़ी को प्रेरणा और देश प्रेम भरने हेतु यहाँ कुछ वर्तमान पीढ़ी को शिवाजी महाराज से जोड़ने के लिए कार्यक्रम की सूचि भी दी है जो उन्हें में जोश जगाकर कुछ करने का जस्बा जगाएगी । तो आयी हम छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार और माता जीजाबाई की शिक्षाएँ – नई पीढ़ी के लिए सीख इन पहलू को और भी विस्तार से जाने और समझे
“हिंदवी स्वराज्य केवल एक सपना नहीं, यह एक कर्तव्य था!”
“हर हर महादेव!”
छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार और माता जीजाबाई की शिक्षाएँ – नई पीढ़ी के लिए सीख
छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के उन महान शासकों में से एक थे, जिन्होंने न केवल मराठा साम्राज्य की स्थापना की, बल्कि अपने प्रशासनिक सुधारों से एक सुदृढ़ और न्यायपूर्ण शासन प्रणाली की नींव रखी। उनकी नीतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं।
शिवाजी महाराज ने एक सुव्यवस्थित और विकेंद्रीकृत प्रशासनिक ढाँचे की स्थापना की, जो उनकी दूरदर्शिता और प्रजा के प्रति समर्पण को दर्शाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज भारतीय इतिहास के महानतम शासकों में से एक थे, जिन्होंने केवल एक मजबूत मराठा साम्राज्य स्थापित नहीं किया , बल्कि अपनी अद्वितीय प्रशासनिक नीतियों से एक आदर्श शासन प्रणाली भी प्रस्तुत की। उनके सुधार आज भी प्रासंगिक हैं और आने वाली पीढ़ियों को नेतृत्व, रणनीति और सुशासन की प्रेरणा देते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रशासनिक ढांचा कुशल, अनुशासित और जनहितकारी था। उनकी नीतियों ने मराठा साम्राज्य को स्थायित्व और समृद्धि प्रदान की।
1.1. केंद्रीय प्रशासन/ अष्टप्रधान मंडल
शिवाजी महाराज ने अष्टप्रधान’ नामक आठ मंत्रियों की परिषद स्थापित की जिसे अष्टप्रधान मंडल कहा जाता है , जिसमें आठ प्रमुख मंत्री शामिल थे: ,जो राज्य के विभिन्न विभागों का संचालन करती थी:
पेशवा (प्रधानमंत्री) – राज्य के प्रमुख मंत्री और प्रशासनिक व्यवस्था के सर्वोच्च अधिकारी।
सरी-ए-नौबत (सेनापति) – सेना का प्रमुख, जो युद्ध रणनीति बनाता था।
अमात्य (वित्त मंत्री) – राजकोष और अर्थव्यवस्था का प्रबंधन करता था।
वाकनीस (गृहमंत्री) – राज्य की आंतरिक खुफिया और गुप्त जानकारी का संग्रह याने आंतरिक प्रशासन की देखरेख करता था।
सचिव (सुरक्षा अधिकारी) – दस्तावेजों और अभिलेखों का प्रबंधन करता था।
सुमंत (विदेश मंत्री) – अन्य राज्यों से संबंध बनाए रखने का कार्य करता था।
न्यायाधीश (मुख्य न्यायाधीश) – न्यायिक प्रणाली को नियंत्रित करता था।
पंडितराव (धार्मिक मंत्री) – धार्मिक कार्यों और अनुष्ठानों की देखरेख करता था।
✅ प्रभाव: इस प्रणाली ने प्रशासन में पारदर्शिता और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया, जिससे राज्य संगठित और सुचारु रूप से चलता रहा।
“स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है!”
2. मराठा किलों की वास्तुकला और उनका महत्व
शिवाजी महाराज के शासनकाल में किले सिर्फ रक्षा के केंद्र नहीं थे, बल्कि वे प्रशासनिक और आर्थिक केंद्र भी थे। उन्होंने 300 से अधिक किलों का निर्माण और पुनर्निर्माण करवाया।
2.1. प्रमुख किले और उनकी विशेषताएँ
रायगढ़ किला – यह शिवाजी महाराज की राजधानी थी और यहीं उनका राज्याभिषेक हुआ था।
सिंहगढ़ किला – यह युद्ध रणनीति का प्रमुख केंद्र था और यहां तानाजी मालुसरे ने वीरगति प्राप्त की थी।
प्रतापगढ़ किला – यह अफजल खान के विरुद्ध ऐतिहासिक विजय का गवाह बना।
राजगढ़ किला – यह शिवाजी की प्रारंभिक राजधानी थी और सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण था।
✅ प्रभाव: इन किलों ने मराठा सेना को गुरिल्ला युद्ध की सुविधा दी और कई आक्रमणों से रक्षा की। इस ऐहितासिक पालो को और यादगार करने और आनेवाले पीढ़ी को प्रोत्साहित कर छत्रपति शिवजी महाराज ने कितने मुश्किलों का सामना कर आपने स्वराज दिलाया तो आइये इन कुछ किल्लो का भ्रमण कर गर्व महसूस कराये-
छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार और माता जीजाबाई की शिक्षाएँ – नई पीढ़ी के लिए सीख
2.2.राजस्व और भूमि सुधार
शिवाजी महाराज ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए:
चौथ और सरदेशमुखी: राजस्व संग्रह के लिए लागू किए गए कर, जिससे राज्य की आय में वृद्धि हुई।
भूमि सर्वेक्षण: कृषि भूमि का सर्वेक्षण कर उचित कर निर्धारण सुनिश्चित किया गया।
किसानों की सुरक्षा: किसानों को अत्याचार से बचाने के लिए कठोर नियम लागू किए गए।
3.किलों की वास्तुकला और उनका महत्व
शिवाजी महाराज ने सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण किलों का निर्माण और पुनर्निर्माण किया, जो उनकी सैन्य शक्ति और रणनीति का प्रतीक थे।
3.1. प्रमुख किले
रायगढ़ किला: राजधानी और राज्याभिषेक स्थल।
सिंहगढ़ किला: रणनीतिक महत्व का किला, जहां तानाजी मालुसरे ने वीरगति पाई।
प्रतापगढ़ किला: अफज़ल खान के साथ ऐतिहासिक युद्ध का साक्षी।
राजगढ़ किला: प्रारंभिक राजधानी और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण।
“हर हर शंभो!”
3.2. किलों की विशेषताएँ
रणनीतिक स्थान: किले पहाड़ियों और समुद्र तटों पर स्थित थे, जिससे दुश्मनों पर नजर रखना आसान था।
वास्तुकला: किलों की संरचना में मजबूत दीवारें, गुप्त मार्ग और जल आपूर्ति की उत्कृष्ट व्यवस्था शामिल थी।
4. शिवाजी महाराज की युद्ध रणनीतियाँ और सैन्य शक्ति
और संगठन
शिवाजी महाराज की युद्ध नीतियाँ उनकी सैन्य कुशलता और रणनीतिक सोच का प्रमाण हैं। शिवाजी महाराज ने भारत में गुरिल्ला युद्ध प्रणाली (छापामार युद्ध) की शुरुआत की, जिसे “गणिमी कावा” कहा जाता था।
4.1. गुरिल्ला युद्ध तकनीक
शिवाजी महाराज ने ‘गणिमी कावा’ या गुरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाया, जिसमें:
तेज़ और अचानक हमले: दुश्मन को आश्चर्यचकित करना।
भूगोल का उपयोग: जंगलों, पहाड़ियों और किलों का लाभ उठाना।
छोटे दस्तों का उपयोग: छोटे समूहों में हमला कर दुश्मन को भ्रमित करना।
“जय भवानी, जय शिवाजी!”
✅ प्रभाव: इस रणनीति के कारण वे बड़े और संगठित मुगल और आदिलशाही सेनाओं पर भारी पड़े।
4.2 नौसेना की स्थापना
शिवाजी महाराज ने समुद्री सुरक्षा के लिए एक मजबूत नौसेना का गठन किया:
नौसेना किले: सिंधुदुर्ग और विजयदुर्ग जैसे किलों का निर्माण।
समुद्री बेड़ा: दुश्मन के जहाजों से मुकाबला करने के लिए युद्धपोतों का निर्माण।
5. शिवाजी महाराज के न्याय और धर्मनिरपेक्ष शासन की नीति
शिवाजी महाराज ने न्याय और समानता पर आधारित शासन प्रणाली विकसित की। एक न्यायपूर्ण और धर्मनिरपेक्ष शासन की स्थापना की:
समानता: सभी धर्मों और जातियों के लोगों के साथ समान व्यवहार।
उन्होंने सभी धर्मों का सम्मान किया और उनके राज्य में किसी भी समुदाय पर अत्याचार नहीं होना चाइए इस बात का ध्यान रखा गया ।
न्यायिक प्रणाली: तेज़ और निष्पक्ष न्याय प्रदान करने के लिए स्थानीय अदालतों की स्थापना।
कर प्रणाली को पारदर्शी बनाया गया, जिससे किसानों को राहत मिली।
✅ प्रभाव: उनकी नीतियाँ आदर्श शासन के उदाहरण बनीं, जो आज भी प्रशंसनीय हैं।
“किसी का धर्म, जाति या पंथ उसके अधिकारों में बाधा नहीं बनना चाहिए।”
छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार और माता जीजाबाई की शिक्षाएँ – नई पीढ़ी के लिए सीख
6. आने वाली पीढ़ियों को शिवाजी महाराज से क्या सीखना चाहिए?
छत्रपति शिवाजी महाराज का जीवन केवल एक इतिहास नहीं, बल्कि एक प्रेरणा है। उनकी कार्यशैली, नेतृत्व और राष्ट्रभक्ति से हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। आने वाली पीढ़ियों को शिवाजी महाराज से ये मूल्य अपनाने चाहिए: शिवाजी महाराज केवल एक शासक नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उनके सिद्धांत हमें सिखाते हैं:
“जो सूर्य की तरह चमकना चाहते हैं, उन्हें पहले सूर्य की तरह जलना होगा!”
✔ साहस और आत्मनिर्भरता: कठिनाइयों से घबराने की बजाय उनका सामना करें।
✔ देशभक्ति और समाज सेवा: समाज और देश की उन्नति के लिए काम करें।
✔ न्याय और समानता: बिना किसी भेदभाव के सभी के साथ न्याय करें।
✔ संघर्ष और मेहनत: लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए पूरी निष्ठा से प्रयास करें।
✔ स्वतंत्रता और आत्मसम्मान: अपने अधिकारों की रक्षा करें और दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें।
✔ रणनीतिक सोच: किसी भी कार्य में दूरदृष्टि और योजना बनाकर आगे बढ़ें।
✔ प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: जैसे शिवाजी महाराज ने किलों और जल स्त्रोतों का ध्यान रखा, वैसे ही हमें पर्यावरण की रक्षा करनी चाहिए।
“हर हर महादेव! जय भवानी, जय शिवाजी!”
7.माता जीजाबाई: छत्रपति शिवाजी की प्रेरणा
“बेटा, तुझे केवल राजा नहीं, प्रजा का रक्षक और न्यायप्रिय शासक बनना है!” – माता जीजाबाई
छत्रपति शिवाजी महाराज का व्यक्तित्व जितना अद्वितीय था, उसके पीछे उतनी ही महान शक्ति थीं उनकी माता राजमाता जीजाबाई। बचपन से ही उन्होंने शिवाजी को राष्ट्रप्रेम, धर्म, और न्याय की शिक्षा दी। उनकी परवरिश और संस्कारों का ही परिणाम था कि शिवाजी महाराज स्वराज्य की स्थापना करने में सफल रहे।
7.1. माता जीजाबाई की शिक्षाएँ और शिवाजी महाराज पर उनका प्रभाव
✅ स्वराज्य की भावना: माता जीजाबाई ने शिवाजी को यह सिखाया कि “राजा वही होता है, जो प्रजा के हित के लिए कार्य करे, न कि अपने स्वार्थ के लिए।” इसी कारण शिवाजी महाराज ने अपने राज्य को स्वराज्य कहा।
✅ रणनीतिक और युद्ध कला: माता जीजाबाई स्वयं एक कुशल योद्धा थीं। उन्होंने शिवाजी को तलवारबाज़ी, घुड़सवारी और सैन्य रणनीतियों की शिक्षा दिलवाई।
✅ धर्म और नैतिकता: उन्होंने रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाकर शिवाजी में धर्म और न्याय की भावना विकसित की।
✅ साहस और आत्मनिर्भरता: जब शिवाजी छोटे थे, तब माता जीजाबाई ने उन्हें प्रेरित किया कि अन्याय के खिलाफ लड़ना ही एक सच्चे राजा की पहचान है।
छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रशासनिक सुधार और माता जीजाबाई की शिक्षाएँ – नई पीढ़ी के लिए सीख
1️⃣. स्वराज्य की शपथ (शिवनेरी किला, 1630)
जब शिवाजी महाराज छोटे थे, माता जीजाबाई उन्हें हर दिन भगवान राम, कृष्ण, और अर्जुन की कहानियाँ सुनाती थीं। उन्होंने शिवाजी को प्रेरित किया कि वे अपने लिए नहीं, बल्कि प्रजा के कल्याण के लिए शासन करें। एक दिन, उन्होंने छोटे शिवाजी को शिवनेरी किले में भगवान शिव के सामने बिठाकर कहा:
“बेटा, तुझे यह प्रतिज्ञा लेनी होगी कि तू इस भूमि को मुगलों और अन्य अत्याचारी शासकों से मुक्त कराकर एक स्वराज्य स्थापित करेगा!”
इस शपथ ने ही आगे चलकर मराठा साम्राज्य की नींव रखी।
2️⃣. अफ़ज़ल ख़ान का वध (1659)
जब बीजापुर का सेनापति अफ़ज़ल ख़ान शिवाजी को धोखे से मारने की योजना बना रहा था, तो माता जीजाबाई ने शिवाजी को सावधान किया। उन्होंने कहा:
“बेटा, शत्रु से सावधान रहना। जो धर्म और न्याय की रक्षा के लिए लड़ता है, विजय उसी की होती है!”
शिवाजी ने माता की बात मानी और अपने चतुराई से अफ़ज़ल ख़ान का वध किया, जिससे मराठों का परचम और ऊँचा हुआ।
3️⃣. औरंगज़ेब से संघर्ष (1666)
जब औरंगज़ेब ने शिवाजी महाराज को आगरा में बंदी बना लिया, तब उन्होंने अपनी माता की शिक्षा को याद रखा:
“बेटा, कठिनाइयाँ तुम्हें रोक नहीं सकतीं, बल्कि तुम्हें और मजबूत बनाएंगी!”
शिवाजी अपनी बुद्धिमानी और रणनीति से जेल से भाग निकले और मराठा साम्राज्य को और मजबूत किया।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासन में कौन-कौन से सुधार किए? उनकी माँ, माता जीजाबाई ने उन्हें कैसे तैयार किया? जानिए पूरी ऐतिहासिक और प्रेरणादायक कहानी।
8. माता जीजाबाई और शिवाजी की शिक्षाएँ: नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा
8.1. माता-पिता के लिए सीख
✔ बच्चों को बचपन से ही संस्कार और अनुशासन सिखाएँ।
✔ उन्हें इतिहास और वीरता की कहानियाँ सुनाएँ, जिससे वे प्रेरित हों।
✔ बच्चों में स्वतंत्र सोच और नेतृत्व क्षमता विकसित करें।
✔ माता-पिता को अपने बच्चों में आत्मनिर्भरता और न्यायप्रियता की भावना जगानी चाहिए।
✔ अपने माता-पिता की शिक्षाओं का सम्मान करें और उनके मार्गदर्शन को अपनाएँ।
✔ जीवन में संघर्षों से घबराने की बजाय उनका सामना करें।
✔ देश और समाज की सेवा करने का संकल्प लें।
✔ ईमानदारी, मेहनत और साहस के साथ अपने लक्ष्य को प्राप्त करें।
“जो अपने माता-पिता के संस्कारों को जीवन में उतारता है, वही सच्चा योद्धा होता है!”
“हर हर महादेव! जय भवानी, जय शिवाजी!”
9.निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रशासनिक नीतियाँ, किलों की रणनीति, और युद्ध प्रणाली न केवल उनके समय में सफल रहीं, बल्कि आज भी प्रेरणादायक बनी हुई हैं। वे केवल एक योद्धा नहीं, बल्कि एक महान प्रशासक भी थे। एक महान प्रशासक, रणनीतिकार और राष्ट्र निर्माता थे। आने वाली पीढ़ियों को उनके जीवन से साहस, नेतृत्व, संघर्ष और न्यायप्रियतान्याय, प्रशासनिक दक्षता की सीख लेनी चाहिए।
“हर पीढ़ी को चाहिए शिवाजी की तरह साहस, तभी राष्ट्र होगा और अधिक विकसित!”आज की पीढ़ी को उनकी शिक्षाओं को अपनाकर, देश की रक्षा, समाज सेवा, और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना चाहिए।
“शिवाजी महाराज ने हमें दिखाया कि कोई भी सपना असंभव नहीं है, बस मेहनत और साहस की आवश्यकता होती है!”
शिवाजी महाराज ने केंद्रीकृत प्रशासन लागू किया, जिसमें शक्तियाँ मंत्रियों और अधिकारियों में बाँटी गईं। ✅ उन्होंने राजस्व प्रणाली को पारदर्शी बनाया और ज़मींदारों की मनमानी पर रोक लगाई। ✅ “चौथ” और “सरदेशमुखी” कर प्रणाली लागू की, जिससे उनकी सेना और प्रशासन मजबूत हुआ। ✅ किलाबंदी नीति के तहत सैकड़ों किलों को मज़बूत बनाया और उनका प्रशासनिक उपयोग किया। ✅ न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा और आम लोगों के लिए निष्पक्ष न्याय प्रणाली विकसित की।
शिवाजी महाराज की युद्ध नीति क्या थी
https://poeticmeeracreativeaura.com/शिवाजी-महाराज-जीजाबाई/उन्होंने गुरिल्ला युद्धनीति (छापामार युद्ध) अपनाई, जिससे वे अपने शत्रुओं को चौंका देते थे। ✅ किलों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए “किलाबंदी नीति” लागू की। ✅ तेज़ गति से आक्रमण कर तुरंत सुरक्षित स्थान पर जाने की रणनीति अपनाई। ✅ उन्होंने सेना में कुशल और योग्य सैनिकों को बढ़ावा दिया, जाति-धर्म से ऊपर उठकर नेतृत्व दिया।
शिवाजी महाराज से प्रेरित होकर आज की पीढ़ी कौन से कार्यक्रम आयोजित कर सकती है?
✅ “शिवाजी महाराज पर निबंध और भाषण प्रतियोगिता” – जिससे बच्चे उनके विचारों को समझें। ✅ “स्वराज्य दिवस” – शिवाजी महाराज की प्रशासनिक नीतियों पर कार्यशाला आयोजित करना। ✅ “गुरिल्ला युद्ध नीति पर नाट्य रूपांतरण” – जिससे युवा उनकी रणनीतियों को समझ सकें। ✅ “इतिहास यात्रा” – उनके किलों और युद्धस्थलों की यात्रा आयोजित करना। ✅ “महिलाओं के लिए सुरक्षा और नेतृत्व कार्यशालाएँ” – क्योंकि शिवाजी महाराज महिलाओं का विशेष सम्मान करते थे।
. क्या शिवाजी महाराज ने महिलाओं का सम्मान किया?
हाँ, शिवाजी महाराज ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए सख्त कानून बनाए थे। ✅ उनकी सेना में महिलाओं को परेशान करने वाले सैनिकों को कड़ी सज़ा दी जाती थी। ✅ युद्ध में जीते गए राज्यों में महिलाओं को कभी अपमानित नहीं किया जाता था।
शिवाजी महाराज की सेना में कौन-कौन सी विशेषताएँ थीं?
✅ उनकी सेना में घुड़सवार, तोपखाना, नाविक सेना और पैदल सैनिकों का शानदार तालमेल था। ✅ वे अपनी सेना को धर्म और जाति के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर नियुक्त करते थे। ✅ उन्होंने एक मजबूत नौसेना (Maratha Navy) का निर्माण किया, जिससे समुद्री क्षेत्रों में भी उनकी पकड़ बनी
शिवाजी महाराज ने केंद्रीकृत प्रशासन लागू किया, जिसमें शक्तियाँ मंत्रियों और अधिकारियों में बाँटी गईं। ✅ उन्होंने राजस्व प्रणाली को पारदर्शी बनाया और ज़मींदारों की मनमानी पर रोक लगाई। ✅ “चौथ” और “सरदेशमुखी” कर प्रणाली लागू की, जिससे उनकी सेना और प्रशासन मजबूत हुआ। ✅ किलाबंदी नीति के तहत सैकड़ों किलों को मज़बूत बनाया और उनका प्रशासनिक उपयोग किया। ✅ न्यायपालिका को स्वतंत्र रखा और आम लोगों के लिए निष्पक्ष न्याय प्रणाली विकसित की।
https://poeticmeeracreativeaura.com/शिवाजी-महाराज-जीजाबाई/उन्होंने गुरिल्ला युद्धनीति (छापामार युद्ध) अपनाई, जिससे वे अपने शत्रुओं को चौंका देते थे। ✅ किलों की सुरक्षा बढ़ाने के लिए “किलाबंदी नीति” लागू की। ✅ तेज़ गति से आक्रमण कर तुरंत सुरक्षित स्थान पर जाने की रणनीति अपनाई। ✅ उन्होंने सेना में कुशल और योग्य सैनिकों को बढ़ावा दिया, जाति-धर्म से ऊपर उठकर नेतृत्व दिया।
✅ “शिवाजी महाराज पर निबंध और भाषण प्रतियोगिता” – जिससे बच्चे उनके विचारों को समझें। ✅ “स्वराज्य दिवस” – शिवाजी महाराज की प्रशासनिक नीतियों पर कार्यशाला आयोजित करना। ✅ “गुरिल्ला युद्ध नीति पर नाट्य रूपांतरण” – जिससे युवा उनकी रणनीतियों को समझ सकें। ✅ “इतिहास यात्रा” – उनके किलों और युद्धस्थलों की यात्रा आयोजित करना। ✅ “महिलाओं के लिए सुरक्षा और नेतृत्व कार्यशालाएँ” – क्योंकि शिवाजी महाराज महिलाओं का विशेष सम्मान करते थे।
हाँ, शिवाजी महाराज ने महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के लिए सख्त कानून बनाए थे। ✅ उनकी सेना में महिलाओं को परेशान करने वाले सैनिकों को कड़ी सज़ा दी जाती थी। ✅ युद्ध में जीते गए राज्यों में महिलाओं को कभी अपमानित नहीं किया जाता था।
✅ उनकी सेना में घुड़सवार, तोपखाना, नाविक सेना और पैदल सैनिकों का शानदार तालमेल था। ✅ वे अपनी सेना को धर्म और जाति के आधार पर नहीं बल्कि योग्यता के आधार पर नियुक्त करते थे। ✅ उन्होंने एक मजबूत नौसेना (Maratha Navy) का निर्माण किया, जिससे समुद्री क्षेत्रों में भी उनकी पकड़ बनी