कार्तिक एकादशी – आषाढी एकादशी:-
दोनों का महत्व बहुत बड़ा है अगर हम साल भर में यह दोनों एकादशी (ग्यारस) करें और इस एकादशी पर अगर हम मौन धारण कर उपवास करते हैं तो हमें नारायण की श्री विट्ठल की बहुत बड़ी कृपा प्राप्त होती है !
यह एकादशी पूरे भारत के अलग-अलग प्रांतो में की जाती है और सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी करते हैं।
दोनों एकादशी का महत्व जानेंगे और क्या-क्या करना चाहिए और उसकी कहां-कहां और क्यों की जाती है वह भी जानेंगे।
The significance and glory of आषाढी एकादशी (देवशयनी) and कार्तिक एकादशी (देवउठनी) are explained in this Hindi article. [विठू माऊली कार्तिकी और आषाढी एकादशी का महत्व और उसकी महिमा कब क्यों और करने से क्या लाभ होता है](https://poeticmeeracreativeaura.com/wp-content/uploads/2024/11/IMG-20241112-WA0007-690×1024.jpg =690×1024)
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को देवशयनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी या आषाढ़ी एकादशी कहा जाता है। उसके महत्व को और एकादशी की महिमा को हम इस जानकारी द्वारा जानेंगे
मान्यता है कि,
इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीर सागर में विश्राम करते हैं ।
देवशयनी एकादशी से चार महीने बाद कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी आती है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा से जाग जाते हैं
तो हमें इस एकादशी में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में जानकारी देखते हैं,
✨️देवशयनी एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) पर क्या करें?
देवशयनी एकादशी पर व्रत रखने से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को सुख मिलता है, पूर्ण जीवन जीने का पुण्य प्राप्त होता है, मुक्ति मिलती है और आत्मा के पार जाने के बाद भगवान विष्णु के धाम में स्थान मिलता है।
तो हम एकादशी की महत्व और महिमा को और गहराई तक जानेंगे…!
किंवदंतियों के अनुसार, महान एकादशी के इस दिन भगवान विष्णु सो गए थे और चार महीने बाद कार्तिक महीने के दौरान प्रबोधिनी एकादशी के दिन फिर से जागे थे । महीने के इस समय को चातुर्मास के रूप में जाना जाता है इस दौरान चार माह तक कोई भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं होता। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की अराधना की जाती है और उनकी कृपा पाने के लिए जातक विधि-विधान से व्रत रखते हैं जो हमारे वर्षा ऋतु के साथ मेल खाता है।
एकादशी दिन…
श्रीहरि को उस कन्या ने, जिसका नाम एकादशी था, बताया कि मुर को श्रीहरि के आशीर्वाद से उसने ही मारा है। खुश होकर श्रीहरि ने एकादशी को सभी तीर्थों में प्रधान होने का वरदान दिया। इस तरह श्रीविष्णु के शरीर से माता एकादशी के उत्पन्न होने की यह कथा पुराणों में वर्णित है।
एकादशी की देवी कौन है?
वहाँ, विष्णु ने अपनी दिव्य शक्ति से उत्पन्न देवी योगमाया को बुलाया, जिन्होंने असुर का वध किया ।
प्रसन्न होकर विष्णु ने देवी को ‘एकादशी’ की उपाधि दी और घोषणा की धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया।
अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे।
देवशयनी एकादशी –
लोग आषाढ़ी एकादशी का व्रत क्यों रखते हैं?
देवशयनी एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) पर क्या करें? देवशयनी एकादशी पर व्रत रखने से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को सुखी, पूर्ण जीवन जीने का पुण्य प्राप्त होता है, मुक्ति मिलती है और आत्मा के पार जाने के बाद भगवान विष्णु के धाम में स्थान मिलता है।
यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है.
इस दिन से भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और फिर कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं. संपूर्ण अधिकार भगवान विष्णु इस दौरान शिव जी को देकर जाते हैं.
कहां एकादशी नहीं की जाती है:-
जगन्नाथपुरी में एकादशी पर क्या खाया जाता
कहा जाता है कि एकादशी माता ने महाप्रसाद का निरादर कर दिया था. जिसके दंड स्वरूप भगवान विष्णु जी ने उन्हे बंधक बनाकर उल्टा लटका रखा है.
भगवान विष्णु ने कहा था कि मेरा प्रसाद मुझसे भी बड़ा है, जो भी व्यक्ति यहां आकर मेरे दर्शन करेगा उसे, महाप्रसाद ग्रहण करना आवश्यक है।
आषाढ़ी एकादशी का महत्व कई क्षेत्रों में भिन्न हो सकता है और इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है। यहां पर इसके महत्व और कारणों को विस्तार से समझाया गया है:
#आषाढ़ी एकादशी का महत्व:-
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आषाढ़ी एकादशी, जिसे *देवशयनी एकादशी* भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण व्रत है। यह भगवान विष्णु के निद्रा (शयन) में जाने का दिन माना जाता है और चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी (प्रबोधिनी एकादशी) पर उनका जागरण होता है। इस अवधि को *चातुर्मास* कहा जाता है, जो भक्ति और तपस्या के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।
### पंढरपुर में आषाढ़ी एकादशी
पंढरपुर महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में स्थित है और यहां आषाढ़ी एकादशी का विशेष महत्व है। इसे भगवान विठोबा (भगवान विष्णु के अवतार) के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है।
लाखों भक्त इस दिन पंढरपुर की यात्रा करते हैं और *वारी यात्रा* में भाग लेते हैं, जो दो प्रमुख संतों, संत ज्ञानेश्वर और संत तुकाराम, के पदचिह्नों पर चलने की परंपरा है। इस यात्रा के दौरान भक्त संतों के भजन गाते हुए और पैदल चलते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं।
पंढरपुर में आषाढ़ी एकादशी का महत्व भगवान विठोबा के प्रति भक्ति और समर्पण के रूप में मनाया जाता है।
### जगन्नाथपुरी में आषाढ़ी एकादशी
जगन्नाथपुरी (पुरी, ओडिशा) में आषाढ़ी एकादशी का महत्व थोड़ा अलग होता है। यहां भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा सबसे प्रमुख उत्सव है, जो आषाढ़ महीने की द्वितीया तिथि (दूसरा दिन) को शुरू होती है और दशमी (दसवें दिन) को समाप्त होती है। हालांकि जगन्नाथपुरी में आषाढ़ी एकादशी को विशेष रूप से नहीं मनाया जाता, लेकिन रथ यात्रा की परंपरा के कारण यह समय विशेष माना जाता है।
भगवान विष्णु के शयन का अर्थ
हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार, आषाढ़ी एकादशी पर भगवान विष्णु शयन करते हैं और चार महीने तक योग निद्रा में रहते हैं।
इस दौरान सभी शुभ कार्य जैसे विवाह,गृह प्रवेश, आदि निषिद्ध माने जाते हैं। इसे चातुर्मास कहा जाता है और यह समय भक्ति, पूजा, व्रत और धार्मिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। धार्मिक दृष्टिकोण से, इस अवधि के दौरान भगवान शिव और देवी पार्वती सृष्टि की देखरेख करते हैं।
आषाढ़ी एकादशी की व्रत कथा:-
प्राचीन काल में मांधाता नामक एक धर्मनिष्ठ और प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी और सभी नियमों का पालन करती थी। एक समय राजा के राज्य में तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई, जिससे वहां अकाल और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो गई। प्रजा भूख-प्यास से त्रस्त हो गई, और राजा भी इस संकट से बहुत दुखी हो गए।
राजा मांधाता ने तपस्वियों और ऋषि-मुनियों से इसका समाधान पूछा। तब अंगिरा ऋषि ने राजा को बताया कि यह संकट भगवान विष्णु की कृपा से ही समाप्त हो सकता है। उन्होंने राजा को आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत रखने का परामर्श दिया।
राजा ने पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ इस एकादशी का व्रत किया। उनके व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिया। इसके परिणामस्वरूप उस वर्ष अच्छी वर्षा हुई, जिससे राज्य में पुनः खुशहाली और समृद्धि आ गई। तब से यह माना गया कि आषाढ़ी एकादशी का व्रत रखने से जीवन के समस्त दुख दूर हो जाते हैं और
व्यक्ति को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
कार्तिकी एकादशी का हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्व है। यह एकादशी दिवाली के बाद शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जिसे प्रबोधिनी एकादशी या देवउठनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा के लिए माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि चार महीने की योगनिद्रा (चातुर्मास) के बाद, इसी दिन भगवान विष्णु जागते हैं। यही कारण है कि इस दिन से सभी शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि पुनः प्रारंभ होते हैं।
कार्तिकी एकादशी का महत्त्व
धार्मिक मान्यता:-
इस दिन का धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के सभी पापों का नाश होता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यह पुण्यदायक और मोक्षदायिनी एकादशी मानी जाती है।
देवउठनी उत्सव: इस दिन भगवान विष्णु के जागने का पर्व भी मनाया जाता है। इसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। भगवान विष्णु को उनकी सेवा के लिए तुलसी दल, दीपक, और अन्य पुष्प अर्पित किए जाते हैं।
तुलसी विवाह: इस दिन तुलसी माता का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ होता है। यह विवाह भगवान विष्णु के प्रति प्रेम और भक्ति का प्रतीक माना जाता है। तुलसी विवाह के आयोजन से घर में सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।
व्रत का महत्व: कार्तिकी एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक शुद्धि होती है। यह व्रत अन्न-त्याग के साथ, दिन भर भगवान का नाम जप और ध्यान करने के साथ किया जाता है। व्रत को भक्तिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश होता है और भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजा विधि
सूर्योदय से पूर्व स्नान कर के साफ कपड़े पहनें।
भगवान विष्णु का ध्यान करके उन्हें पीले वस्त्र, फूल, और तुलसी दल अर्पित करें।
दिनभर उपवास रखें और श्रीहरि का नाम जपते रहें।
शाम को तुलसी के पौधे के पास दीप जलाएं और भजन कीर्तन करें।
अगले दिन द्वादशी को पूजा करके गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराएं और दान दें।
पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार राजा रुक्मांगद ने इस व्रत का पालन किया था और उनके व्रत से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें सभी पापों से मुक्त किया। ऐसी मान्यता है कि कार्तिकी एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि आती है, और इस व्रत का पालन करने वाले को बैकुंठधाम की प्राप्ति होती है।
देव प्रबोधनी एकादशी व्रत कथा
शंखासुर नामक एक बलशाली असुर था। इसने तीनों लोकों में बहुत उत्पात मचाया। देवाताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु शंखासुर से युद्घ करने गए। कई वर्षों तक शंखासुर से भगवान विष्णु का युद्घ हुआ। युद्घ में शंखासुर मारा गया। युद्घ करते हुए भगवान विष्णु काफी थक गए अतः क्षीर सागर में अनंत शयन करने लगे।
चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान की निद्रा टूटी। देवताओं ने इस अवसर पर विष्णु भगवान की पूजा की। इस तरह देव प्रबोधनी एकादशी व्रत और पूजा का विधान शुरू हुआ।
समापन
इस प्रकार, एकादशी का महत्व और इसे मनाने की परंपराएं विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हो सकती हैं। पंढरपुर में भगवान विठोबा के प्रति भक्ति और जगन्नाथपुरी में रथ यात्रा की परंपरा इसके मुख्य उदाहरण हैं।
धार्मिक मान्यताओं और लोक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु के शयन के समय में सृष्टि की देखरेख अन्य देवताओं द्वारा की जाती है।
आषाढ़ी एकादशी का महत्व और इसे मनाने के तरीके विभिन्न क्षेत्रों में भिन्न हो सकते हैं। यहाँ इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की ।
# महत्व और इसे कहाँ मनाया जाता है
*आषाढ़ी एकादशी* (देवशयनी एकादशी) हिंदू धर्म में अत्यंत महत्वपूर्ण व्रत है और इसे मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन को भगवान विष्णु के निद्रा (शयन) में जाने का दिन माना जाता है।
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चार माह सोने के बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान की निद्रा टूटी। देवताओं ने इस अवसर पर विष्णु भगवान की पूजा की। इस तरह देव प्रबोधनी एकादशी व्रत और पूजा का विधान शुरू हुआ।
महाराष्ट्र (पंढरपुर)
महाराष्ट्र में, विशेष रूप से पंढरपुर में, आषाढ़ी एकादशी का अत्यधिक महत्व है। यह भगवान विठोबा (विठ्ठल) के प्रमुख तीर्थस्थल के रूप में जाना जाता है। लाखों भक्त इस दिन पंढरपुर की यात्रा करते हैं और वारी यात्रा में भाग लेते हैं। वारी यात्रा संत तुकाराम और संत ज्ञानेश्वर के पदचिह्नों पर चलने की परंपरा है। भक्त पैदल चलते हुए पंढरपुर पहुंचते हैं और भगवान विठोबा के दर्शन करते हैं। इस दिन विशेष पूजा, भजन, कीर्तन और दान का आयोजन किया जाता है।