मेरी पाठशाला–शिक्षक दिवस पर स्कूल जीवन की भावनात्मक कविता

मेरी पाठशाला – शिक्षक दिवस पर विशेष हिंदी कविता

Table of Contents

(School Life Hindi Poem for Students with Emotional Touch)

🌟 प्रस्तावना

क्या आपने कभी उन गलियों को याद किया है जहाँ कंधे पर बस्ता था, मन में सपने थे और आँखों में एक मासूम चमक?

वही पाठशाला… पाठशाला जाने का उत्साह दोस्तों के साथ बातें करते हुए स्कूल में पहुंचना एक दूजे का होमवर्क क्या किया क्या नहीं किया यह सब देखना वह पल तो अजीब ही और बहुत ही सुंदर थे। हंसी मजाक, टिटौली करते हुए हम स्कूल से घर लौटते थे है ना वह यादगार पल और साथ-साथ जहां हमें ज्ञान प्राप्त हुआ जहाँ पहली बार “गुरु” का अर्थ समझ आया।
मेरी पाठशाला – संस्कारों और आत्म‑विश्वास की कविता
मेरी पाठशाला–शिक्षक दिवस पर स्कूल जीवन की भावनात्मक कविता
  जहाँ हर डांट में प्रेम था, और हर होमवर्क के पीछे जीवन का सबक छिपा था। वही स्कूल जिसने सिर्फ अक्षर नहीं, संस्कार दिए — जिसने डर को आत्म‑विश्वास में बदला और हमें अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाया। 🙏 इस कविता में बस एक विद्यार्थी की नहीं, हर उस इंसान की कहानी है जिसने अपने जीवन की पहली इमारत “पाठशाला” में बनाई। चलिए, उन गलियों में दोबारा चलते हैं… जहां एक कक्षा से शुरू हुई ज़िंदगी, आज चरम तक पहुँची है। इस सफर को फिर से जी लेते हैं।

वो पहला कदम,

शब्दों में सजे बचपन के रंग,

हाथों में बस्ता, चले हम लेकर सपनों की उमंग।
वो घंटी की टन-टन,

थोडा सहमा, थोडा डर लेकर मन में आशा की किरण,

जैसे जैसे वक्त हैं जाता,

सभी प्रश्न का उत्तर मिल जाता,

फिर हमे गुरु भी लगते है

सबसे प्यारे,

उनके चरण मे स्वर्ग सिधारे,

उनकी रहा पर हम है चलते

जीवन मैं हम कामयाब हो जाते!

ऐसे हम गुरू को हम भाये,

ऐसा हम कृतार्थ कर जाये!!

ऐसी लगन से हम शिक्षा लेकर जीवन मे सफल हो पाये,

मात पिता का नाम रोशन कर जग मे हम छाये,

ऐसेही होते है वो बचपन के सपने,

जो लगते है हमे अपने,

वो पहली कक्षा, डरी आंखें,

पर उम्मीदो से भरें सपनें।

धीरे धीरे लगे ओ अपने ।।



🏫 मेरी पाठशाला – एक विद्यार्थी की संकल्प कविता

 

“मेरी पाठशाला  ज्ञान का मंदिर

 

मैं वहां जाने के लिए हमेशा रहता हूं अधिर,

 

जहां मात-पिता को हम जाने से मिलता हो धीर,

एक दिन मेरा बच्चा बनेगा शूरवीर ..!”

☆☆☆☆☆☆☆☆

व्यक्तिमत्व की बात है आखिर,

पाठशाला से सीखेंगे हम,

और बनेंगे नौजवान देश के लिए गंभीर..!

*****************

●जहां मिलता हो ज्ञान का भंडार,

मेरी पाठशाला ही मेरे जीवन का आधार,

जहां मिहमारे शिक्षक-शिक्षिका हमारी हैं शान…!

जिनकी वजह से हमें मिलता है जीवन में सन्मान…

सभी गुरुवर्य को करता हूं मैं शत-शत प्रणाम…!!

 

मेरी पाठशाला है मेरे लिए ‘ सपनों की खान’…

“मुझे है मेरी पाठशाला पर पूरा है अभिमान”..!

जहां मिलता हो हमारे सपनों को आकार…

एक दिन हम करेंगे, पूरे सपने साकार,

आने वाले वक्त को करेंगे हम स्वीकार…

उठाएंगे हर मुश्किलों का भार..

बनेंगे हम देश का आधार²….!!


🇮🇳वो पहला दिन – डर से लेकर उत्साह तक

गुरुजनों से मिली रोशनी  कैसी थी वो बचपन की नादानी,

उडान भरणे की हे चाहत मन में,

 छोड जाये हम अपनी पहचानी,

हर छात्र की हे ये जुबानी!

ना होगी कोई भविष्यवाणी,

मेहनत और लगन यही है सफलता की निशानी..!


📚 2. शिक्षा का प्रभाव

सा विद्या या विमुक्तये।

(Sa Vidya Ya Vimuktaye) भावार्थ: सच्ची विद्या वही है जो मुक्त करे — अज्ञान से, डर से,  एवं सीमाओं से।

पाठशाला की गोद में पलते सपने

शिक्षक वो दीपक हैं, जिन्होंने जीवन को दिशा दी, शिक्षा दिवस की सीख – जीवन का असली सार

आज जब जीवन में सफल हूं, तो पीछे मेरी पाठशाला ही है।


शिक्षकों से मिली रोशनी

जो हमे ज्ञान का प्रकाश दिखाते,

ऐसे गुरु सबको भाते,

गुरुजन जैसे ज्ञान का दीप जलाते,
अज्ञानता के तिमिर को हराते।
‘क’ से ‘कर्म’ और ‘ग’ से ‘गौरव’ सिखाया,

हर मुश्किल से लढना सिखाया

हर शब्द में जीवन का सार समाया


दोस्तों की दोस्ती – जीवन की दौलत

मोज मस्ती की थे वो दिन ,

ना कोई रोकटोक,

दोस्तो से मिलने का था मन मे जोश,

खेलकूद में नहीं रहता था हमें कोई होश

दाट लगाते हमें

हर रोज,

दोस्तो के बिना हो जाते हम भी बोर..!


मेरी पाठशाला – संस्कारों और आत्म‑विश्वास की कविता
मेरी पाठशाला – संस्कारों और आत्म‑विश्वास की कविता
  3. स्वयं पर विश्वास – आत्मबल के लिए

> उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्। आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मन:॥ (भगवद्गीता – अध्याय 6, श्लोक 5)

भावार्थ: स्वयं को स्वयं ही ऊपर उठाओ। तुम्हारा सबसे बड़ा मित्र भी “तुम खुद” हो — और यदि तुम अपनी ही उपेक्षा करोगे, तो सबसे बड़ा शत्रु भी “तुम खुद” बन जाओगे।

लंच बॉक्स से साझा हर निवाला,

होमवर्क में भी साथ कर एक दूजे को सिखाया।
खेल के मैदान से परीक्षा की रात तक,

हर वक्त में हमने साथ निभाया ,

स्कूल की वह दास्तान कुछ अलग ही होती है ना कोई शिकवा ना कोई उम्मीद,

बस साथ में अपनी दोस्ती होती,

यह हमने जीवन में सीखा स्कूल ने बदली मेरी जीवन की रेखा।

जिसमें हमे होती है सही और गलत की पहचान..

ले लिया है कुछ अच्छा करने का मन में ठान!

पाठशाला ही मेरा जीवनपथ का रथ।

कामयाबी के साथ-साथ

अच्छा इंसान बनने की लेते हैं हम शपथ!


पाठशाला से मिले अमूल्य सबक

  1. अनुशासन ही आत्मबल है

  2. सच्चे मित्र जीवन का गहना हैं।

  3. गुरु की दृष्टि भाग्य बदल सकती है।

  4. सफलता से पहले संघर्ष आता है।

  5. सम्मान और संस्कार ही असली पूँजी हैं।

  6.  धर्म की राह चलकर दया विनम्रता और इंसानियत रखना यह हमने सीखा।


🌸 4. विद्यार्थियों के लिए आदर्श व्यवहार

काक चेष्टा बको ध्यानं, स्वान निद्रा तथैव च।

अल्पहारी गृहत्यागी विद्यार्थी पंच लक्षणम्॥

भावार्थ:

एक विद्यार्थी में ये पांच गुण हों:

कौवे जैसा प्रयास, बगुले जैसा ध्यान, कुत्ते जैसी कम नींद, कम भोजन और घर से दूरी (अर्थात एकाग्रता और तप)।


मैं वहां जाने को रहता हूं सदा अधीर,
जहां मात-पिता को मिल जाए थोड़ा धीर।

मेरी पाठशाला ज्ञान का मंदिर!

जहां किताबें नहीं, सपनों की उड़ान मिलती है,
जहां हर गलती पर नई पहचान मिलती है।

🌿

वो पाठशाला… मेरा पहला मैदान,
जहां सीखा झुकना, वहीं सीखा सम्मान।
वो सुबह की प्रार्थना, गुरुजी की दृष्टि,
हर शब्द में छिपी थी जीवन की सृष्टि।

🌸

एक दिन मेरा बच्चा भी बनेगा शूरवीर,
ये सोच आज भी करता है मन गंभीर।
शब्द नहीं, संस्कारों की होती है तस्वीर,
जो गढ़ती है मेरी पाठशाला की तकदीर।

🌼

व्यक्तित्व की बात है आखिर,
गुरुओं से मिलता है चिंतन पावन और पवित्र।
दोस्ती, अनुशासन, और सच्चा आत्म-सम्मान,
पाठशाला ने दिया मुझे यह स्वाभिमान।

🌟

अब जब जीवन के रण में खड़ा हूं डटकर,
हर चुनौती को लेता हूं मुस्कराकर।
क्योंकि मेरी पाठशाला ने सिखाया है यही,
कि ज्ञान से बढ़कर कोई अस्त्र नहीं।

अब मेरा प्रण है, मेरा सपना भी यही,
कि बनूं वह दीपक जो औरों की राहें करे रोशन कभी।
मेरी पाठशाला – तू सिर्फ इमारत नहीं,
तू मेरी आत्मा का पहला स्पर्श है सही।


जब कॉलेज पहुँचा, तो पाठशाला बोली...

अब तू उड़, पर अपनी जड़ें न भूल,
तेरा आधार यही है, यही तेरा मूल।
जो तू बना है, वो मेरे आंगन की देन है,
हर सफल कदम में मेरी छवि की रेन है!


कविता का सुंदर समापन – आभार

अब जब जीवन की राहों में खड़ा हूँ,
हर मुश्किल से लड़ने को बड़ा हूँ।
पर तेरी गोदी अब भी याद आती है,
मेरी पाठशाला – तू माँ सी लगती है।

नन्हे नन्हे कदमों से चला में जीवन की पार की हर डगर, अब सफलता के इस सागर में,

सुहाना हुआ है जीवन का यह सफर।।


🌺 समापन: मेरी पाठशाला – हमेशा मेरे साथ

आज जब मैं जीवन के हर मोड़ पर अपने निर्णय खुद लेने लगा हूँ, जहां में कामयाब हूं और मैं पीछे मुड़कर देखने पर सबसे पहले याद आती है — मेरी पाठशाला।

जहाँ नन्हें क़दमों को चलना सिखाया गया, शब्दों को आत्मा में उतारा गया और स्वप्नों को उड़ान दी गई।

शिक्षकों की वह डाँट, वो दोस्त की कॉपी से होमवर्क की चोरी, और वो लास्ट बेंच की मुस्कान — सबकुछ आज भी मेरे भीतर सांस लेता है।

🌕 गुरुपौर्णिमा के इस पावन अवसर पर, मैं सिर झुकाकर आभार प्रकट करता हूँ हर उस पाठशाला के प्रति, जिसने मुझे बनाया।

क्योंकि मेरा व्यक्तित्व, मेरा आत्मबल और मेरी सोच — सब वहीं से जन्मी है। अगर सही में आपकी भी जीवन में आपकी पाठशाला की याद आती हो तो साझा करें!  https://Poeticmeeracreativeaura.com

से जुड़े़ रहें!

एक शिक्षक की दृष्टि, एक शब्द, और एक विश्वास — जीवन की दिशा बदल सकता है।”

और अपने दोस्तों तक, शिक्षक गुरु को जरुर शेयर करें इस लेख कविता के जरिए🙏🙏🙇🏻

Q1: एक अच्छी पाठशाला कैसे चुनें?

उत्तर:
अच्छी पाठशाला वही है जहाँ सिर्फ शिक्षा नहीं, संस्कार और सोचने की स्वतंत्रता भी मिले। वहां शिक्षक केवल सिखाते नहीं, बच्चों के भीतर आत्मबल जगाते हैं। फीस नहीं, वहां का संस्कृति-आधारित वातावरण देखना अधिक ज़रूरी है।

उत्तर:
 शिक्षक आज भी चरित्र, निर्णय क्षमता और सहानुभूति के निर्माता हैं। आज के समय में भले ही ज़माना बदल गया हो पर गुरु का शिक्षक का महत्व आज भी उतना ही है हम भले भी गूगल पे कितना भी सर्च कर लो जो हमें शिक्षक एक पढ़ा सकते हैं वो कोई नहीं पढ़ा सकता और उनकी छात्र छाया में हमें जीवन में हम जरुर सफल होते हैं! उनकी मार्गदर्शन पर चले तो

उत्तर:
बिलकुल नहीं! शिक्षा का संबंध पैसे से नहीं, प्रेरणा से है। एक शिक्षक यदि समर्पित है और पाठशाला में सकारात्मकता है, तो छोटा स्कूल भी महान बना सकता है। अगर हम पालक और बच्चों को बचपन से ही परिपक्व बनाएं तो छोटी पाठशाला में भी वह उन्नति की राह पर अग्रसर होगा

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