आषाढी(देवशयनी)-कार्तिक एकादशी(देवउठनी)की महिमा /महत्व हिंदी लेख
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जब संसार की मोह-माया,अज्ञान और सांसारिक दुखों से मन थकने लगता है,
तो आत्मा किसी ऐसे **दिव्य स्पर्श** की तलाश में निकल पड़ती है जो उसे शांति, प्रेम और ज्ञान की ओर ले जाए।
ऐसी ही भक्ति रस से ओतप्रोत, *मोक्षदायिनी यात्रा* है — आषाढ़ शुक्ल एकादशी (देवशयनी) से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी (देवउठनी) तक की यह **अलौकिक चारमास साधना**।
जहां एक ओर **पाप और अधर्म** से मुक्ति की कामना होती है, वहीं दूसरी ओर **संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम** जैसे संतों की **सांस्कृतिक धरोहर** हमारे भीतर **आनंदमय जीवन** के बीज बोती है।

आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक – यह केवल समय नहीं, **भक्ति का चार माह लंबा अमृतकाल** है।
जहां एक ओर **विठ्ठल माऊली की चरणधूलि में वारकरी जनों की पदयात्रा** होती है, वहीं दूसरी ओर घर-घर तुलसी विवाह तक उत्सव की श्रृंखला चलती है।
📿 *“माझे माऊली पंढरीनाथा, मोह मजवरी पडलो…”*
(हे मेरे पंढरीनाथ! मोह मुझ पर हावी हो गया है…) — संत तुकाराम की यह आत्म-स्वीकृति भक्ति की चरम अवस्था का प्रतीक है।
यह लेख उसी पवित्र यात्रा का एक साहित्यिक रूपांतरण है – **एक ऐसी परंपरा जिसे संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव, एकनाथ जैसे संतों ने भक्ति की गहराइयों में सींचा।**
📿 *“काय पंढरीनाथा, मज वाट पाहे”*
(पंढरपुर के नाथ मुझे राह देख रहे हैं…) – संत तुकाराम की यह पंक्ति हृदय को भक्तिरस में डुबो देती है।
दोनों का महत्व उपवास का बहुत बड़ा है याने मोक्षदायिनी है। अगर हम साल भर में यह दोनों एकादशी (ग्यारस) करें जैसे की आत्मा को स्पर्श करने वाला ऐसे इस एकादशी महिमा है और इस दिन अगर कोई भी भक्त मौन धारण कर उपवास करते हैं तो हमें नारायण की श्री विट्ठल की बहुत बड़ी कृपा प्राप्त होती है !
यह एकादशी पूरे भारत के अलग-अलग प्रांतो में की जाती है और सबसे ज्यादा महाराष्ट्र में छोटे बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी करते हैं पवित्र उत्सव विथल भक्ति में दुप्कार पुरे तलीन होकर हम जानेंगे,क्या-क्या करना चाहिए और उसकी कहां-कहां और क्यों की जाती है वह भी जानेंगे। मान्यता है कि,
इस दिन से, भगवान विष्णु चार महीने के लिए क्षीर सागर में विश्राम करते हैं ।
देवशयनी एकादशी से चार महीने बाद कार्तिक माह में देवउठनी एकादशी आती है। इस एकादशी पर भगवान विष्णु निद्रा से जग जाते हैं। तो हमें इस एकादशी में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए इसके बारे में जानकारी देखते हैं।
1. देवशयनी एकादशी का महत्व:
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भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में प्रवेश करते हैं।
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शुरुआत होती है चातुर्मास की।
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“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…” — धर्म की रक्षा के लिए श्रीहरि विश्राम से लौटते हैं।
2. चातुर्मास की साधना और परंपराएं:
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अन्न, नमक, तामसिक भोजन से संयम।
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मानस पूजा, भजन, व्रत, और ध्यान।
3. देवउठनी एकादशी का उदय:
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भगवान विष्णु जागते हैं, विवाह आदि शुभ कार्य पुनः आरंभ होते हैं।
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तुलसी विवाह का आयोजन होता है।
4. वारकरी और संत परंपरा का योगदान:
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पंढरपुर यात्रा: पैदल चलकर भक्त विठ्ठल के दर्शन को जाते हैं।
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संत ज्ञानेश्वर का ज्ञानेश्वरी ग्रंथ और अभंग साहित्य:
📜 “हरिपाठ वाचावा, हरिपाठ करावा, हरिनाम घ्यावा”
(हरिपाठ पढ़ो, हरिपाठ करो, हरिनाम लो)
— ज्ञानेश्वर माउली -
आषाढी(देवशयनी)-कार्तिक एकादशी(देवउठनी)की महिमा /महत्व हिंदी लेख
✨️देवशयनी एकादशी (आषाढ़ी एकादशी) पर क्या करें?
देवशयनी एकादशी पर व्रत रखने से भक्त के पाप नष्ट हो जाते हैं और भक्त को सुख मिलता है,पूर्ण जीवन जीने का पुण्य प्राप्त होता है, मुक्ति मिलती है और आत्मा के पार जाने के बाद भगवान विष्णु के धाम में स्थान मिलता है।
तो हम एकादशी की महत्व और महिमा को और गहराई तक जानेंगे।