कान्हा की नटखट सी~कृष्ण लीला नाटिका
नटखट कान्हा की मीठी सी बोली,प्रस्तुत एक नाटिका जिसमें कृष्ण कन्हैया की हमजोली…!!
नटखट कान्हा की नटखट सी नाटिका
कान्हा की कृष्णलीला
एकपात्री नाटिका
कान्हा :-
शुऽऽऽ! (झुकते हुऐ)
कई मैया ना देख ले..!
वाव हं ..!! (मुंह में पानी आ जाता है)
माखन तो बहुत स्वादिष्ट है, थोड़ा और खा ले; बहुत भूख लगी है !
ओ मैया मोरी मै नहीं माखन खायो..!!
यह सब ग्वाले ही माखन खाते हैं और मुझे ही माखन चोर कहते हैं !
और तो और सारी गोपिया मेरे मुंह पर माखन लगाकर मुझे नचवाती है मैया और चुंबन लेले के मुझे बहोत परेशान करती है मैया!
ओऽऽ मैया मोरी मैं नहीं माखन खायो ओ मैया मोरी मैं नहीं मांखन खायो..! नहीं नहीं मैया मेरे कान में खींचे मुझे मत बांधो मैं तो आपका प्यार कान्हा हूं नाऽऽ!
मैं हूं कृष्ण कन्हैयाऽऽ
बंसी बजैया माखन चुरइया
यशोदा का लल्ला,
नंदबाबा का राज दुलारा,
देवकी वासुदेव का गोपाला
सारे गोपियों का प्यार हो इस धरती पर प्रेम का रंग बरसने आया हूं ..!
राधा से जुड़ा है मेरा हर काम सब कहते हैं मुझे राधेश्याम
हर पल जो साथ रहते मेरे, भैया प्यारे बलदाऊ राम।
कोई कहता है मुझे छलिया,
मुरली की धुन पर झूम उठी सारी गलियां!
गोपियों संग नाचे कन्हैयाऽऽ
इस नटखट कान्हा के बारे में क्या कहते हैं यशोदा मैया।
जरा मेरी मुख से ही सुन लो..
ऽऽ
(कान्हा भजन गाते हुए )
छोटी छोटी गईया छोटे छोटे ग्वाल छोटो सो मेरो मदन गोपाल (भजन)
राधा की धुन में आज नाचे देखो कृष्णा कान्हा…(भजन)
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की..!!🙏🍨
यह नाटिका कान्हा की मस्ती और उनकी अद्भुत लीलाओं को व्यक्त करती है। इसे मंच पर प्रस्तुत करने के लिए संवाद और भजन को और अधिक निखारा जा सकता है। यह नाटिका मंच पर बच्चों और वयस्कों के साथ खेली जा सकती है। भजनों और संवादों में मस्ती और भक्ति का मेल इसे और जीवंत बना देगा। 🙏
दोन पात्री नाटिका
पात्र:
कान्हा
यशोदा
कृष्ण लीला नाटिका: नटखट कान्हा की मस्ती
(मंच पर कान्हा माखन के बर्तन के पास झुकते हुए दिखते हैं। चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान)
कान्हा:
(धीरे से)
शुऽऽऽ! कहीं मैया ना देख ले..!
(मुंह में पानी भरते हुए)
वाह! माखन तो बहुत स्वादिष्ट है! थोड़ा और खा लूं… बहुत भूख लगी है!
(माखन खाते हुए)
(थोड़ी देर में कान्हा को पकड़ने के लिए यशोदा मंच पर आती हैं।)
यशोदा:
कान्हा! तूने फिर माखन चुराया? मैंने कहा था न, माखन को हाथ मत लगाना!
कान्हा:
(मासूमियत से)
ओऽऽ मैया मोरी, मैं नहीं माखन खायो..!
ये सब ग्वाले ही माखन खाते हैं और मुझे माखन चोर कहते हैं।
और तो और, सारी गोपियां मेरे मुंह पर माखन लगाकर मुझे नचवाती हैं और चुंबन लेकर मुझे बहुत परेशान करती हैं,मैया!
(मासूम चेहरे के साथ)
नहीं-नहीं, मैया! मेरे कान मत खींचो, मुझे मत बांधो।
मैं तो आपका प्यारा कान्हा हूं न…!
(थोड़ी देर रुककर कान्हा मंच के केंद्र में आते हैं। बांसुरी हाथ में लिए हुए।)
कान्हा:
मैं हूं कृष्ण कन्हैया,
बंसी बजैया, माखन चुरइया,
यशोदा का लल्ला,
नंद बाबा का राज दुलारा,
देवकी-वासुदेव का गोपाला।
सारी गोपियों का प्यार,
इस धरती पर प्रेम का रंग बरसाने आया हूं।
(गोपियों के साथ नृत्य करते हुए कान्हा गाते हैं।)
भजन:
छोटी-छोटी गईया, छोटे-छोटे ग्वाल,
छोटो सो मेरो मदन गोपाल।
कान्हा:
राधा से जुड़ा है मेरा हर काम,
सब कहते हैं मुझे राधेश्याम।
हर पल जो साथ रहते मेरे,
भैया प्यारे बलदाऊ राम।
कोई कहता है मुझे छलिया,
मुरली की धुन पर झूम उठी सारी गलियां।
गोपियों संग नाचे कन्हैया!
(मंच पर यशोदा और गोपियां आती हैं। सब कान्हा के साथ नृत्य करते हैं।)
भजन:
हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैया लाल की!
इस नाटिका में दो और पात्र जोड़े जा सकते हैं और उनके माध्यम से कहानी को और रोचक बनाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, “बलराम” और “गोपियां” को जोड़कर संवाद और हास्य का तड़का लगाया जा सकता है।
नटखट कान्हा की कृष्ण लीला (संवर्धित संस्करण)
पात्र:
-
कान्हा
-
यशोदा
-
बलराम (भैया)
-
गोपियां
नाटिका का विस्तार
(मंच पर बलराम प्रवेश करते हैं। कान्हा माखन खाते हुए नजर आते हैं।)
बलराम:
अरे कान्हा! फिर से माखन चुराते हुए पकड़ा जाएगा, और मैया से मार पड़ेगी।
(हंसते हुए)
तू कब सीधा होगा रे?
कान्हा:
(शरारती अंदाज में)
अरे भैया, तुम तो मेरे बड़े भाई हो, मुझे बचा लेना!
वैसे भी माखन खाना बुरा थोड़ी है। ये तो देवताओं का प्रसाद है।
बलराम:
(हंसते हुए)
देवताओं का प्रसाद? अच्छा, तो तू देवता बन गया?
(नाटकीय अंदाज में)
“माखन चोर कान्हा” अब “देवता कान्हा”!
(तभी गोपियां प्रवेश करती हैं, उनके हाथों में पानी के घड़े और छड़ी हैं।)
गोपी 1:
देखो-देखो, कान्हा फिर माखन खा रहा है!
चलो इसे पकड़ें और इसकी शिकायत मैया से करें।
गोपी 2:
(मजाकिया अंदाज में)
नहीं-नहीं, पहले इसे नचवाते हैं।
चल कान्हा, हमें नाच दिखा!
कान्हा:
(हंसते हुए)
अरे गोपियो, तुम मुझे क्यों सताती हो?
मैंने कुछ नहीं खाया। देखो, ये सब भैया ने किया है!
बलराम:
(आश्चर्य से)
अरे रे, अब तो ये मुझे फंसा रहा है!
(गोपियां कान्हा को घेर लेती हैं। कान्हा बांसुरी बजाते हुए नृत्य करना शुरू कर देते हैं। गोपियां भी झूमने लगती हैं।)
भजन:
मोर मुकुट सिर पर सोहे, मुरली मन मोहनी।
छोटे-छोटे पग में बांधे पायल झनकानी।
(कुछ देर बाद यशोदा मंच पर आती हैं। कान्हा को माखन खाते हुए देखती हैं।)
यशोदा:
अरे कान्हा! तू फिर माखन खा रहा है?
मैंने कहा था न, मैं तुझे बांध दूंगी।
कान्हा:
(मासूमियत से)
मैया, मैंने कुछ नहीं खाया।
ये सब गोपियां और बलराम भैया ने किया है!
मुझे क्यों डांट रही हो?
(यशोदा कान्हा को पकड़ने के लिए दौड़ती हैं। कान्हा भागते हुए बांसुरी बजाते हैं। बलराम, गोपियां, और यशोदा सब हंसते हैं।)
संवाद और भजनों का जोड़:
- बलराम का संवाद:
“कान्हा, माखन खाना तो तेरा शौक है, पर पकड़ाना तेरा नसीब!” - गोपियों का चुटीला संवाद:
“कान्हा, तेरी मुरली की धुन पर हम नाचते हैं, पर माखन की चोरी पर तेरी शिकायत भी करेंगे।” - भजन का जोड़:
“राधा-कृष्ण का प्रेम निराला,
बंसी की तान है सबसे प्यारा।”
इस नाटिका में हास्य, भक्ति और मस्ती का अद्भुत समन्वय होगा, जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देगा।
FAQ:-
एक पात्री कान्हा नाटिका
*कृष्ण जी का असली नाम क्या है?
जब जब पाप बाद गए तब तब नारायण ने धरती पैर अवतार लिया श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के 8वें अवतार हैं। इन्हें कन्हैया, श्याम, गोपाल, केशव, द्वारकेश या द्वारकाधीश, वासुदेव आदि नामों से भी जाना है। श्रीकृष्ण का जन्म द्वापरयुग में हुआ था। कृष्ण वासुदेव और देवकी की 8वीं संतान थे।